सुहृद्भेद ५५ फिरता सजीव प्राणी हूँ। पिंगलक : तुम यह क्या कहते हो बेटा, तुम तो हमारे भूतपूर्व मन्त्री के सुपुत्र हो ! साथ ही नीतिज्ञ भी हो! तुम्हें यहां आने से किसने रोका ? मै तो सहर्ष तुम्हारी सेवा स्वी- कार करना चाहता हूँ। दमनक ने देखा स्वामी इस समय मुझ पर अत्यधिक प्रसन्न हैं । अतः वह वोला : स्वामी, मै आपसे एकान्त में कुछ बात पूछना चाहता हूँ। आप आज्ञा करें तो ...। पिंगलक ने सव को एक ओर कर दिया और दमनक को अपने पास बुलाकर कहा: कहो मन्त्री-पुत्र! दमनक : महाराज, मै पूछना चाहता हूँ कि आप यमुना- तट पर पहुंचकर भी विना पानी पिए वापस क्यों लौट आए ? पिंगलक : बेटा, यह तुम्हारा भ्रम है ! कुछ भी तो नही था ! दमनक : स्वामी, मै आपका सेवक हूँ। आप यदि मुझे बता देंगे तो मै आपकी कुछ सेवा कर सकूँगा । हाँ, यदि आप न बताना चाहें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। पिंगलक गम्भीर होकर सोचने लगा। फिर कुछ समय उपरान्त वोला: तुम्हारा विचार ठीक है । मै तुम्हे बता रहा हूँ, पर यह बात गुप्त रहनी चाहिए। इस वन में अब कोई महान् बलशाली पशु आ गया है। उसकी हुंकार मेघ-गर्जन के समान है। जिसकी हुंकार ही इतनी डरावनी है वह स्वयं कितना बलवान्
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