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५. हितोपदेश an. लता अपने निकट रहने वाले को ही अपना लेते है । करटक . अस्तु, तुम्हारा अभिप्राय क्या है ? तुम करना क्या चाहते हो? दमनक : सुनो, हमारा राजा आज भयभीत है। इसकी आकृति नहीं देखते, चेहरे का रग उतर गया है। करटक : तो तुम क्या करोगे? दमनक : मै राजा के पास जाकर राजनीति के अनुसार उसकी यह चिन्ता दूर करूंगा। करटक : फिर क्या ? दमनक : फिर, फिर बह हमारे वश में हो जायेगा, और हमारे दिन आनन्दपूर्वक कटने लग जायेंगे। करटक : यदि ऐसा है तो जाओ, भगवान् तुम्हारा कल्याण करे। चतुर दमनक करटक से विदा लेकर पिंगलक की राजसभा की ओर बढ़ चला । वहाँ उसने देखा-भालू, चीता, हाथी और न जाने कितने पशु उसके दरबार में बैठे है। दमनक को आते देखकर पिगलक ने द्वारपाल को संकेत से कहा कि उसे बिना रोक-टोक आने दिया जाये । दमनक को राजा ने सभी में समुचित स्थान दिया और फिर वोला : मन्त्रीपुत्र! आज बहुत समय बाद आपने राज-सभा मे दर्शन दिये! दमनक : महाराज, यदि आपको मुझसे कोई कार्य नही तो समय पर आपकी सेवा मे उपस्थित होना मेरा तो परम- धर्म है । मैं क्षुद्र जीव हूँ तो क्या हुआ ? एक छोटा-सा तिनका भी समय पर काम आता है। फिर मै तो हाथ-पैर वाला चलता-