यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२ जिसका काम उसी को साजे अव्यापारेषु व्यापार यो नरः कर्तुमिच्छति स भूमौ निहतः शेते कीलोत्पाटीव वानरः । . . ० जो दूसरे के कर्तव्य कार्य को स्वयं करके अनधिकार चैप्टा करता है वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होता है। 0 . . . मगध देश में धर्मारण्य के पास शुभदत्त नाम का कायस्थ बौद्धसंन्यासियों के निवास के लिए विहार बनवा रहा था। विहार के आस-पास मकान बनाने की. लकड़ियाँ पड़ी थी। उन्ही में एक लकड़ी को बीच से थोड़ा-सा चीरकर उसे अलग-अलग रखने की इच्छा से बढ़ई ने उसमें एक कील लगा दी थी। इतने मे ही जंगल से खेलता-कूदता एक बन्दरों का समूह उधर से निकला । इस समूह मे से एक बन्दर उस लकड़ी पर चढ़ गया और उसके बीच की कील दोनों हाथों से पकड़कर निकालने लगा । बड़े प्रयत्न से उसने कील को निकाल लिया। कील के निकलते ही बन्दर का पिछला भाग उन दोनों खण्डों के बीच में फंस गया और वह उसमें दबकर मर गया । (40)