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४८ हितोपदेग आपत्ति में कभी भी घबराना नहीं चाहिए । क्योंकि घब- राना ही किसी भी काम में सबसे बड़ा विघ्न है। अब तो जैसे भी हो सके उपाय करना चाहिए। यह विचार कर वह संजीवक को वहीं छोड़कर पास के धर्मपुर नाम के शहर में गया । वहाँ से एक और हृष्ट-पुष्ट बैल को ले आया। उसे गाड़ी में जोतकर वर्धमान तो अपने व्यापार के लिए काश्मीर की ओर चला गया और इधर संजीवक जैसे-तैसे अपने तीन पैरों पर खड़ा हुआ और स्वतन्त्रतापूर्वक वन में विचरने लगा। वन में उसके भाग्य ने उसकी सहायता की। स्वेच्छापूर्वक खाते- पीने के कारण वह वहुत बलवान हो गया। उसी वन में पिंगलक नाम का सिह राज्य करता था । दमनक और करटक नाम के दो उसके मन्त्री के पुत्र थे। ये दोनों प्रायः पिंगलक के साथ रहते । एक दिन पिगलक पानी पीने की इच्छा से यमुना नदी की ओर गया। वहाँ उसने मेघ गर्जन के समान किसी का शब्द सुना । वह विचार करने लगा--यह किसकी गर्जना है ? उसे इस गर्जना से इतना भय हुआ कि उसका रंग फीका पड़ गया और वह बिना पानी पिये ही वापस लौट आया। पास ही खड़ा हुआ दमनक यह सब देख रहा था । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अपने साथी करटक से बोला : न जाने क्यों आज महाराज पिंगलक बिना जल पिये ही नदी से वापस चले आये। अब उन्हें देखो कितने उदास बैठे हैं ! अरे भाई ! छोड़ो भी इन बातों को, हमारी बला से । हम तो सेवक-वृत्ति से ही दूर रहेगे। यह भी कोई,जीवन है ? देखो भी, सेवक कितना मूर्ख होता है । सदा उन्नति पाने के .