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मिनलाभ नाम के दो बैलों को अपनी गाड़ी में जोता और भांति-भांति का सामान उस पर लादकर काश्मीर की ओर चल दिया। अभी वह नगर से बाहर निकला ही था कि उसे उसका पुराना मित्र मिल गया। वर्धमान को इस प्रकार व्यापार के लिये जाते देखकर वह बोला : मित्र वर्धमान, तुम्हारे पास तो अपार धन-राशि है, अब तुम और भी धन जमा करने मे क्यों लगे हुए हो? वर्धमान बोला : मित्र अपने को अपूर्ण समझने वाला व्यक्ति एक-न-एक दिन अवश्य पूर्ण हो जाता है । क्योकि वह सदा प्रयत्नशील रहता है । इसके विपरीत अपूर्ण होते हुए भी अहंकारवश अपने को पूर्ण समझने वाला व्यक्ति दरिद्र हो जाता है । मनुष्य को कभी धन की अधिकता देख निश्चेप्ट नही होना चाहिए । जल की एक-एक बून्द से घड़ा भर जाया करता है। मै भी वार-बार थोड़ा-थोड़ा धन उपाजित करूँगा तो एक दिन यही अल्प धन अपार धन बन जायेगा। इस प्रकार अपने मित्र को समझाकर वह व्यापारी आगे बढ़ा । मार्ग मे सुदुर्ग नाम के निविड़ वन में पहुंचकर सजीवक बैल गिर पड़ा और उसकी एक टॉग टूट गई। सजीवक के अचानक गिर पड़ने से वर्धमान को बड़ा दुःख हुआ। इस विघ्न के कारण वह वही जगल मे ठहर गया और विचार करने लगा: चतुर व्यक्ति चाहे किसी भी चतुरता से इधर-उधर जाकर पुरुषार्थ करे, उसका अच्छा या बुरा फल तो विधाता के हाथ में है। अव क्या किया जाये ? उसी समय उसे ध्यान आया- {