यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- मिनलाभ प्रसन्न हुआ । मन-ही-मन भाग्य की सराहना करते हुए विचार करने लगा-आज सौभाग्य से मुझे इतना अधिक आहार मिल गया है। इस भोजन से अव में निश्चिन्त होकर तीन मास तक निर्वाह कर सकूँगा। एक मास तक तो यह मनुष्य का शरीर मेरा निर्वाह करेगा। हिरण और सूअर को खाकर मै दो मास तक आनन्द से निर्वाह करूँगा । सर्प और धनुष की डोरी एक-एक दिन के लिए पर्याप्त होगी। यह विचारकर गीदड़ धनुष की डोरी को ही सबसे पहले खाने लगा। वार-वार चबाने से धनुष की डोरी टूट गई और धनुष की नोक सियार के तालू को छेदकर बाहर निकल आई। मन्थर बोला : इसलिए मैं कहता हूँ कि संचय करना तो कोई बुरा नही, पर अधिक संचय भी नहीं करना चाहिए। x x x मन्थरवोला : अच्छा, छोड़ो इन बातों को । अव हम तीनों यहां सुखपूर्वक रहें और पिछली वातों को भुला दें। जिस प्रभु ने इस असार संसार का निर्माण किया है वह हमारा और अखिल विश्व का पालन भी करेगा। इस प्रकार वहाँ रहते उन्हें पर्याप्त समय व्यतीत हो गया । एक दिन एक हिरण व्याकुल होकर उसी मार्ग से भागता हुआ ज रहा था। उसे देखकर मन्थर पानी में घुस गया। हिरण्यक दिल में घुस गया और लघुपतनक उड़कर वृक्ष की शाखा पर ब. गया। कुछ क्षण वाद लघुपतनक ने ध्यान से दूर तक देखा। न्तु जव उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया तो उसने फिर सव व बुला लिया। हिरण के पास आ जाने पर लघुपतनक बोला : मित्र, तुम ।