६ हितोपदेश मनुष्य को पाप कर्म में गिरा सकता है, जिसके पास ये चारों हों वह पाप के कौन से गर्त में गिरेगा-इसका अनुमान भी. कठिन है। राजा सुदर्शन ने जब इन श्लोकों को सुना तो उसे अपने मूर्ख पुत्रों का ध्यान हो आया । ये पुत्र मूर्ख होने के साथ-साथ व्यसनी भी थे। राजा सोचने लगा-कई कुपुत्रों से तो अच्छा है कि एक ही पुत्र हो, किन्तु गुणी हो । कुपुत्रों की अधिक संख्या आकाश के अगणित तारों की तरह निरर्थक रह जाती है। एक सुपुत्र चन्द्रमा की भांति अकेला ही कुल को उज्ज्वल बना देता है। पर इन राजकुमारों में तो कोई भी सुपुत्र नहीं। विचारों के इस भँवर में उसका सिर चकरा गया। और अन्त में उसने निश्चय किया कि जिस तरह भी हो सकेगा, वह अपने पुत्रों को नीतिज्ञ और विद्वान् वनायेगा। राजा सुदर्शन ने अगले दिन एक सभा बुलाई। पटना के अतिरिक्त अन्य देशों के विद्वान् भी उसमें पधारे । राजा ने सब विद्वानों का अभिनन्दन करते हुए कहा : विद्वानो, मुझे केवल अपने पुत्रों की चिन्ता है । ऐसा प्रतीत होता है कि ये पुत्र मेरे वंश को कलकित करेगे । संसार में उसी पुत्र का जन्म लेना सफल होता है जो अपने वंश की मान-मर्यादा बढ़ाये । निरर्थक पुत्रों से क्या लाभ ? कोई विद्वान् मेरे मूखी, पुत्रों को भी विद्वान् बना दे तो मैं उसका उपकार मानूंगा । इस कार्य को पूरा करने के लिए मैं छः मास का समय देता हूँ। सभा में सन्नाटा छा गया। किसी भी अन्य विद्वान् मे राज पुत्रों को इतने थोड़े समय में राजनीतिज्ञ वना देने की सामर्थ्य नही थी। केवल विष्णुशर्मा नाम का एक विद्वान् अपने आसन से
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