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३४ हितोपदेश 1. मित्र, आज तुम मेरी बात ध्यान से क्यो नहीं सुन रहे । कारण क्या है ? चूडाकर्ण : मित्र, क्या कारण वताऊँ ? इस स्थान पर एक चूहा रहता है । यह सदा मेरे भिक्षापात्र मे से भोजन चुरा लिया करता है। वीणाकर्ण ने खूटी की ओर देखा और फिर वोला : यह छोटा-सा चूहा इतने ऊँचे स्थान पर उछलकर कैसे चढ़ जाता है, कोई-न-कोई इसका कारण अवश्य होगा । मेरे विचार मे तो इसके विल मे धन का कोष है। उसकी गर्मी से यह इतना उछलता है। 'कुछ क्षण विचार करने के उपरान्त सन्यासी ने फावड़ा लेकर मेरे विल को खोद डाला और उसमे जो कुछ भोजन अथवा मेरा धन-धान्य रखा था, ले लिया। धन छिन जाने के उपरान्त मै धन की चिन्ता में इतना निर्वल हो गया कि अपने भोजन के लिये भी पहले की भाति उछल-कूद न सका ।। एक दिन धीरे-धीरे जा रहा था तो मुझे इस दीनदशी चूडाकर्ण बोला : धन से प्राणी बलवान होता है और धन से ही लोग उसे विद्वान् कहते है । इस पापी चूहे को ही देखो, आज धन न रहने के कारण साधारण चूहे की भॉति चल-फिर रहा है । चूड़ाकर्ण की बात सुनकर मैंने विचार किया---यह सल्ला हो कहता है । प्राणी के हाथ, पांव, कान, नाक आदि वही इन्द्रियाँ होती हैं; उसी प्रकार की बुद्धि होती है, बेचारा पुरुप भी वही होता है जो आज से पहले था, परन्तु धन के न रहने पर वही प्राणी क्षण-भर मे बदल जाता है । अब तो मेरा भी वही हाल कर ' " ।