यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मलान मित्र, तुम्हारी दृढ़ता और मित्र-प्रेम को देखकर में अधिक प्रसन्न हूँ। कही दुष्ट से मित्रता न कर बडूं, इसलिए मैंने इतने दोप गिनाए । आओ, अब हम सदा मित्र रहने की प्रतिमा करें। दोनो ने आपस मे जीवन भर मित्र रहने की प्रतिना की। कुछ दिनो वाद की बात है । एक दिन लघुपतनक हिरण्यक से वोला. मित्र ! इस वन मे अब कई दिनों से खाना भी नहीं मिलता। सोचा है इस वन को छोडकर अब किसी दूसरे वन मे चला जाऊँ। हिरण्यक वोला जिस प्रकार अपने स्थान से दृटे हुग दाँत, केग और नाखून अच्छे नहीं लगते, उसी प्रकार अपने स्थान से भ्रप्ट प्राणी भी सुख नही पाता । लघुपतनक . यह तो तुम ठीक कहते हो । पर जिस स्थान पर भोजन ही प्राप्त न हो, उस स्थान पर रहने ने क्या लाभ फिर भाई, मै तो पुरुपार्थ पर विश्वास करता हूँ। पुम्पार्थी के लिए अपने पराये मे कुछ भेद नहीं। वह तो जहाँ जाता है आपने पुरुषार्थ से ही सफलता प्राप्त करता है। परदेन भी उसके लिए अपना ही देश हो जाता है । दण्डकारण्य मे कर्पूरगीर जा सक एक सरोवर है। उसमे मन्थर नाम का एक मांग मे, मित्र रहता है। वह केवल उपदेन करना ही नही जानता. al उस पर आचरण भी करता है। निश्चय ही वह वहाँ हमारा प्रेमपूर्वक स्वागत करेगा। दोनो वहाँ चलने को सहमत हो गये और गीन ही मन्धर के निवास स्थान पर पहुँच गये। > ,