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मित्रलाभ मुझे खा जाना चाहता है। उसी के छल से मेरी आज यह दना हो गई है। अब कोई वचाव का रास्ता निकालो। दोनों विचार ही करते रहे कि सवेरा हो गया। उसी समय कौवे ने दूर ही से देखा-खेत का स्वामी हाथ में लाठी लिए चला आ रहा था । अब कौवे को एक उपाय मूना, वह हिरण से वोला: मित्र, तुम सांस रोककर इस तरह लेट जाओ कि ग्वेत का स्वामी तुम्हें मरा हुआ समझे। अपना पेट फुल्ला लो, टांगें अकड़ा लो । जैसे ही मैं वोलू, उठकर भाग जाना । कौवे की

वात हिरण को बहुत पसद माई । उसको वात मान वह धरती

पर लेट गया। इतने में खेत का मालिक आयो । जान से हिरण को फमा देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ पास जाकर उन्ने हिरण को विल्कुल बेजान-सा देखा। निश्चिन्त होकर उसने जाल समेटना प्रारम्भ कर दिया। भील समेटते हुए वह हिरण से कुछ ही दूर गया था कि कौवे नेल ऊँचे स्वर मे चिल्लाना शुरू कर दिया । हिरण कौवे की पुकार सुनते ही भाग खड़ा हुआ। बेजान से पटे हिरण को गते देख किसान ने डण्डा फेककर मारा। लेकिन वह डण्डा हिरण के न लग कर विश्वानपाती दड़ के सिर पर जा लगा पापी अपने पाप से स्वय ही रा गया। x x x x हिरण्यक फिर वोला, इसलिए मैं कहता हूँ कि मध्य भक्षक मे मित्रता हो ही नही सकती।