मित्रलाभ पक्षियो ने कोई कारण न पाकर जगद्गव को ही दोपी समझ लिया और उसे मार डाला । x x x X
कौए के मुंह से इस कहानी को सुनकर गीदड़ आग-बूला हो गया और बोला काकराज, जब आपकी इस हिरण के साथ मित्रता हुई थी तव आप भी तो इसके लिए नए थे। अब आपका प्रेम क्यो वढता ही जा रहा है ? अभी हिरण ने मित्रता देखी ही कहाँ आपस की कलह को शान्त करने की इच्छा से हिरण ने उन दोनों को शान्त किया। तीनो उसी वन मे आनन्दपूर्वक रहने लगे। एक दिन एकान्त स्थान पाकर सियार हिरण से वोला : मित्र ! अव यहाँ सूखे मैदान मे कुछ भी नहीं रखा । यहाँ मे कुछ हो पर लहलहाता हुआ अनाज का खेत है। चलो, वही चले। अव हिरण सियार के साथ उसी खेत मे जाने लगा। ये A खाते और खेत का नाश भी करते । एक दिन खेत के मालिक ने तग आकर खेत में जाल बिछा दिया। हिरण वहाँ चरने पहुंचा और जाल मे फस गया । उसे अपने ऊपर अब गुस्सा आ रहा था। वह सोच रहा था कि यदि में अनाज के लोभ से नित्य प्रति यहाँ न आता तो कभी न फमता । हिरण इस तरह सोच ही रहा था कि सियार उमी रास्ते से निकला। हि को जाल में फसा देखकर वह उसके पास गया । अपने मि. याते देखकर हिरण को धैर्य बंधा। वह मोचने लगा : य अपने तीखे दांतों से जाल को काट डालेगा।