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२६ हितोपदेश साधु लोग तो गुणरहित अज्ञानी पर भी दया करते हैं। यदि उनके पास धन नही तो न सही, मीठी वातों से ही वह अतिथि का सत्कार करते है। फिर आपके तो कहने ही क्या हैं ? दीर्घकर्ण की बात सुनकर जरद्गव बोला : भाई, बात यह है कि बिलाव स्वभाव से मांस-भक्षी होता है। यहाँ तो उनके भक्ष्य पक्षी रहते ही हैं। अतएव सजग रहना पड़ता है। जरदगव की बात सुनते ही पृथ्वी को छूकर अपने कान पकड़ते हुए बिलाव वोला : राम-राम, मै चान्द्रायण व्रत का अनुष्ठान कर रहा हूँ। धर्म- शास्त्रों का मैने भलीभाति अध्ययन किया है। शास्त्र के 'अहिसा परमो धर्मः' (अहिंसा सर्वश्रेष्ठ धर्म है) के सिद्धान्त को वर्पो से मानता आया हूँ। धर्म ही तो जीवन का सार है। एक एव सुहृद् धर्मः निधनेप्यऽनुयाति यः धर्म ही प्राणी का सबसे बड़ा बन्धु है जो कि मरने के बाद भी नहीं छोड़ता। विलाव के धर्म-वचनों को सुनकर गिद्ध को भी उस पर श्रद्धा होने लगी। उसने विलाव को भी अपने ही साथ में रहने की आज्ञा दे दी। बिलाव कुछ दिन तो शांत रहा और फिर धीरे-धीरे वह एक-एक करके पक्षियों को खाने लगा। वृतज्ञ के सव पक्षी अपने बच्चों को न पाकर रोते और विलाप करता पर कारण नहीं जान पाते । एक दिन पक्षियों ने कोटर में की पखों को देखा । अब वह और सतर्क होकर खोज करने लगे बिलाव को जब पता चला तो वह नौ-दो-ग्यारह हो गया