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२४ हितोपदेश उन पर झपटा। पक्षी बिलाव के भय से चिल्लाने लगे। जरद्गव ने उनका क्रन्दन सुना तो सचेष्ट होकर बोला : कौन है ? बिलाव को यह नहीं पता था कि उनका कोई पहरेदार भी यही बैठा है। वह हक्का-बक्का रह गया । भय से वह कापने लगा। परन्तु थोडे ही समय बाद वह सजग हो गया। उसने सोचा-तब तक भय से नही डरना चाहिए जब तक वह सामने न आजाये । जब वह सामने आजाये, तव जो कुछ बन पड़े, उसे दूर करने के लिए करे। इस समय अगर मै भागता हूँ तव भी मै पक्षियो को खा तो सकता नही। अत. कुछ सोचकर दीर्घकर्ण विलाव जरद्गव की ओर बढ़ा और पास जाकर बोला: महात्मन् ! प्रणाम हो। कौन हो तुम, जो मुझे प्रणाम कर रहे हो? भगवन्, मै दीर्घकरण नाम का विलाव हूँ। बिलाव का नाम सुनना था कि जरद्गव की आँखे खुल गई । वह गरोज कर वोला: तुम यहाँ क्यों आए हो ? भाग जाओ, नहीं तो मैं तुम्हे अभी मार डालूंगा। पहले जो मै कहता हूँ, कृपया आप उसे सुन ले । तदनन हार आप जैसा चाहे करे । नीति कहती है कि किसी से केरल विजातीय होने के कारण वैर नहीं करना चाहिए। उसस व्यवहार देखने के उपरान्त वह जिस योग्य हो उसके साथ है। ही व्यवहार करे। कहो, अपने आने का प्रयोजन कहो ।