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२२ हितो मित्र, मैं क्षुद्रबुद्धि नाम का सियार हूँ। इस विशाल मे मेरा कोई भी साथी नही । आज आपको देखकर प्रर होता है मुझे मेरा अभीष्ट मिल गया। यह तो मेरा सौभाग्य है, हिरण ने नम्रतापूर्वक कह मेरे लिए कोई सेवा हो तो कहें। सेवा ! मै तो बस यही चाहता हूँ कि आपकी मित्र का सौभाग्य प्राप्त करूँ और सदा आपके ही साथ रहूँ। इतना कहकर गीदड़ हिरण के साथ हो लिया । दो दिन भर हिलमिल कर खेलते रहे। सायंकाल गीदड़ भी हि के साथ-साथ उसके घर की ओर गया। दोनों अभी वृक्ष नीचे पहुंचे ही थे कि हिरण के परम मित्र कौए ने हिरण से पूछा मित्र, आज यह दूसरा कौन है ? यह सियार है। हम लोगों से मित्रता करना चाहता है। मित्र ! जिसके कुल, निवास, शील, स्वभाव आदि । पता न हो, उसे मित्र नहीं बनाना चाहिए। नीति कहती; i --अज्ञात कुल शीलस्य वासो देयो न कस्यचित् जिसके कुल अथवा शील-स्वभाव का पता न हो उस किर को भी अपने साथ रहने की आजा नहीं देनी चाहिए । अन्यथ इस प्रकार प्रत्येक पर विश्वास करनेवाला उसी भांति मार जाता है, जैसे विलाव के दोष से बेचारा गिद्ध मारा गया था। हिरण बोला : वह कैसे? कौए ने तब बिलाव और गिद्ध की कथा सुनाई।