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सन्धि १५७ और शिशु की ओर फन उठाकर देखने लगा। सर्प को देखते ही बालक की रक्षा करने के विचार से नेवला सर्प पर झपटा और उसने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। निमन्त्रण के उपरान्त ब्राह्मण अपने घर में घुसा। नेवले ने ब्राह्मण का द्वार पर ही स्वागत किया। सर्प का रक्त अव भी नेवले के मुंह पर लगा था। ब्राह्मण को वह दूर से ही दिखाई दे गया। उसने समझा कि नेवले ने पुत्र को खा लिया। फिर क्या था। उसने हाथ के डन्डे से नेवले के प्राण ले लिए। परन्तु घर मे जाकर जब उसने बच्चे को खेलते हुए और सर्प के टुकड़े देखे तो महान् पश्चात्ताप हुआ। x x x x मन्त्री बोला : इसलिए मैं कहता हूँ प्रत्येक कार्य विचार कर करना चाहिए। राजा: मन्त्रिन्, यदि तुम्हारा यही विचार है तो सन्धि करले । पर क्या यह सम्भव है ? मन्त्री :महाराज आप चिन्ता न करें। हिरण्यगर्भ और उसका मन्त्री दोनो ही योग्य एवं विद्वान् है। विद्वान् लोग पारस्परिक कलह से सदा दूर रहा करते है। ? x x x x चित्रवर्ण और उसके मन्त्री की बाते हिरण्यगर्भ के दूत ने स्पष्ट रूप से अपने स्वामी को कह सुनाई । और कहा : महाराज, चित्रवर्ण का मन्त्री आपसे सन्धि करने आ रहा है। हिरण्यगर्भ को कुछ शंका हुई । क्योंकि शत्रु की नीति का कुछ भी पता चलाना बहुत कठिन होता है। शत्रु सन्धि के