यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२ बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए सहसा विदधीत न क्रियाम . . ० . कोई भी काम उतावलेपन में न करो, तभी आपत्तियों से बचाव होगा । . ० . उज्जयिनी नगरी में माधव नाम का एक ब्राह्मण रहता था। एक दिन उनकी पत्नी, पति से बच्चे की रक्षा के लिए कहकर स्वयं स्नान करने चली गई। वह पुत्र के पास बैठा उसकी देख-रेख कर रहा था कि उसके लिए कहीं से भोजन का निमन्त्रण आ गया। बेचारा माधव विचार में पड़ गया। यदि जाता हूँ तो बालक की रक्षा कौन करेगा। यदि नहीं जाता तो यजमान अवश्य ही किसी दूसरे ब्राह्मण को बुला लेगा । यजमान को आसन देकर वह घूम-फिर कर विचार करने लगा। बहुत विचार करने के उपरान्त उसे एक युक्ति सूझी । उसने पले हुए नेवले को बालक की रक्षा के लिए वहीं छोड़ दिया और स्वयं यजमान के साथ निमन्त्रण खाने के लिए चला गया । ब्राह्मण के जाने पश्चात् एक सर्प विल में से निकला ( १५६ )