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जैसा समय वैसा काम स्कन्धेनापि वहेच्छन् कार्यामासाद्य बुद्धिमान् । o बुद्धिमान् पुरुष को चाहिये कि काम पड़ने पर शत्रु का भी आदर कर ले। . o . . किसी पुरानी फुलवारी में मन्दविष नाम का सर्प रहता था। वह बहुत वृद्ध था, अतः निर्वल होने के कारण वह अपना भोजन तक एकत्रित नहीं कर पाता था । एक दिन मन्दविष नदी के किनारे सुस्त सा-पड़ा था। उसे एक मेंढक ने देख लिया। कुछ समय विचार करने के उपरान्त उसने दूर से ही पूछा : सर्प ! आज तू अपना भोजन क्यों नहीं खोज रहा ? सर्प : भाई, तुम अपना काम करो। मुझ मन्द-भाग्य के विषय में पूछकर क्या लोगे? अब मेंढक की उत्सुकता और बढ़ी और आग्रह करते हुए कहा : नहीं भाई, तुम्हें यह सब बताना ही पड़ेगा। सर्प : अगर तुम नहीं मानते तो सुनो- ( १५२ )