सन्धि तीसरा ठग भी मिल गया। उसने भी हँसते हुए कहा : पण्डितजी इस कुत्ते को कहाँ ले जा रहे हो? तीसरे धूर्त की वात सुनकर ब्राह्मण को विश्वास होगया कि हो-न-हो यह कुत्ता ही है। दुकानदार ने मुझे ठग लिया। अव तो मै अपवित्र हो गया। ब्राह्मण ने बकरे को वही मार्ग पर छोड़ दिया और स्वयं स्नान करने चल दिया। x x x x 7 मेघवर्ण बोला : इसीलिए मैं कहता हूँ कि अपने समान ही दूसरों को भी सज्जन समझने वाला व्यक्ति धूर्ती से ठगा जाता है। राजा : परन्तु मेघवर्ण, तू इतने दिनों तक शत्रुओं के किले में रहा किस तरह ? तुझे उन्होने कुछ भी कष्ट नहीं दिया। मेघवर्ण : महाराज, जिससे कार्य निकलना होता है उसके लिए सब कुछ सहा जाता है। लोग जलाने वाले ईधन को सिर पर ढोया करते हैं। चतुर व्यक्ति तो अपनी कार्य-सिद्धि के लिये शत्रुओं को भी कन्धों पर ढोता है । जैसे बूढ़े सर्प ने मेंढकों को कन्धों पर ढोया ?
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