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सन्धि १४७ ब्राह्मण देवता, कहां से आ रहे हो? ब्राह्मण : नगर से आ रहा हूँ। धूर्त : इस कुत्ते को कन्धे पर लादकर कहां ले जा रहे हो? ब्राह्मण : कुत्ता ! नहीं भाई, यह कुत्ता नही, वकरा है। इतना कह ब्राह्मण आगे बढ़ चला। धूर्त : हमारा क्या ! कुत्ते को ही लादकर ले जाओ। ब्राह्मण : अभी लगभग दो मील ही चला होगा कि एक दूसरा धूर्त मिला। धूर्त : पण्डितजी ! कहाँ जा रहे हो ? ब्राह्मण : अपने आश्रम जा रहा हूँ। धूर्त ने आश्चर्य से पूछा : अरे ! तुमने इस कुत्ते को अपने कन्धे पर क्यों लाद रखा है ? ब्राह्मण : कुत्ता ! इतना कहकर उसने उसे पृथ्वी पर खड़ा किया और ध्यान से देखकर फिर आगे चलता बना। ब्राह्मण सोचता जा रहा था : क्या यह वकरा नहीं ? कुत्ता भी क्या ऐसा ही होता है ? पर कुत्ते की तो पूंछ काफी लम्बी होती है? हो सकता है यह किसी नई जाति का कुत्ता हो ? ब्राह्मण ने फिर ध्यान से देखा-पर यह सोचकर कि कुछ भी हो यह कुत्ता नहीं हो सकता । ये लोग न जाने क्यो कुत्ता कहते है, आगे चल दिया। कौआ कुछ ठहरकर बोला : ठीक भी है, दुष्टों की बातों में आकर सज्जन की बुद्धि फिर जाती है । राजा वोला : कैसे? कौआ बोला..