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सलाह से काम करो सन्धिमिच्छेत् समेनापि . O तुल्य वलवाले से सन्धि कर लेना ही श्रेयस्कर है। ० प्राचीन काल में सुन्द और अपसुन्द नाम के दो महान् बलशाली दैत्य हुए है। इन्हे त्रिलोकी पर एकछत्र राज्य करने की महान् अभिलाषा थी। अतः इन्होने शंकर भगवान् की तपस्या प्रारम्भ कर दी। भगवान् आशुतोष शकर इन दोनों की तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने दोनों को दर्शन दिए और कहा दैत्यो, मै री तपस्या से प्रसन्न हूँ। तुम जो वर- दान चाहो माँग लो। सरस्वती की कृपा से वे दैत्य जो कुछ वरदान मांगना चाहते थे न माँग पाए । अपितु उन्होंने कहा : भगवान्, यदि आप प्रसन्न है तो हमे अपनी पार्वती वर- दान में दे दीजिए। शंकर भगवान् के क्रोध की सीमा न रही। परन्तु वचन- ( १४२ )