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. ľ हितोपदेश ओर आते देखकर कबूतरों के प्राण सूखने लगे। तभी चित्रग्रीव बोला साथियो, आपत्ति कभी भी घबराने से दूर नहीं होती। हमे आलस्य का त्याग करना चाहिये और 'छोटी-छोटी वस्तुओं के सगठन से भी कार्य सिद्ध हो जाते है की नीति के अनुसार एक साथ जाल लेकर उड़ जाना चाहिये। चित्रग्रीव की बात का सव कबूतरो ने समर्थन किया और वे सव जाल समेत उड़ चले। कबूतरो को जाल समेत देखकर शिकारी के आश्चर्य की सीमा न रही। वह भी उनके पीछे-पीछे भागा और सोचने लगा कि जव इनमें फूट पड़ेगी, तव ये स्वय पृथ्वी पर गिर पड़ेगे। पर कबूतर उड़ते ही गये । शिकारी भागते-भागते थक गया । कबूतर भी उसकी पहुँच से वाहर हो गए थे। निराश होकर शिकारी हाथ मलता हुआ वापस मुड़ गया। शिकारी के लौट जाने पर कबूतरों ने अपने सरदार चित्र- ग्रीव से पूछा : स्वामिन् ! अव क्या करना चाहिये ? चित्रग्रीव सोचने लगा--आपत्ति मे माता, पिता और मित्र यह तीन ही स्वाभाविक सहायक होते है और शेष तो अपनी कार्यसिद्धि के लिए ही हित करते है । माता-पिता का तो अब पता नहीं । हाँ, मित्र कई है। तो फिर किसके पास चलना चाहिये । इसी तरह थोड़ा समय विचार करने पर से अपने परम मित्र हिरण्यक चूहे का ध्यान आया । वह बोला : मित्रो, आओ हम अपने मित्र हिरण्यक के पास चले। वह अपने तेज दाँतों से इस जाल को पल-भर मे काट डालेगा। सव कबूतर हिरण्यक के बिल के पास जाकर उतर पर। N