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५ नीच न छोड़े नीचता नीच. श्लाघ्यपदं प्राप्य स्वामिनं हन्तुमिच्छति। O . . नीच व्यक्ति ऊँचा पद पाकर उपकारी स्वामी को ही मारना चाहता है। . . गौतम ऋषि के आश्रम में एक महातप नाम के ऋषि तप करते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि कौआ अपनी चोंच में किसी चूहे को ले जा रहा है । अचानक चूहा उसकी चोंच से छूट गया। महातप मुनि को उस पर दया आई। मुनि ने उसे उठा लिया। अन्न के दाने खिलाकर उन्होंने उसे पाला-पोसा। एक दिन किसी बिल्ले की उस पर निगाह पड़ गई। जब वह उसे पकड़ने दौड़ा तो चूहा भाग कर मुनि की गोद में आ- गया । मुनि को उस पर दया आई तो उन्होंने उसे चूहे से बिलाव वना दिया। जंगली कुत्ते इस विलाव को खाने दौड़ते थे। अतः मुनि ने उसे भी कुत्ता बना दिया । अव वह कुत्ता व्याघ्र से डरता था । अतः मुनि ने उसे कुत्ते से व्याघ्र भी बना दिया। प्रायः पड़ोसी मुनि इस व्याघ्र और महातप मुनि को देख t ( १३४ )