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सन्धि १२५ मन्त्री : महाराज, मेघवर्ण नाम का कौआ अपने परिवार सहित नहीं दिखाई देता । अत. प्रतीत होता है कि उसी ने किले में आग लगाई। हिरण्यगर्भ : इसमें किसी का भी अपराध नहीं । दैव ही हमारे प्रतिकूल था। मन्त्री : राजन्, बुरी दशा प्राप्त करके भाग्य की निन्दा करना मूर्खता है । अपने कर्मों के दोष को कोई भी बुरा नही कहता। एक बार एक कछुए ने भी इसी प्रकार कहा था । राजा : वह क्या कथा है ? मन्त्री : सुनो!