मित्रलाभ और ज्यों-ज्यो निकलने की कोशिश की, दलदल मे और अधिक फंसता गया। पथिक को दलदल में फंसा देखकर व्याघ्र उसकी 'ओर वढा और वोला : पथिक, स्नान क्यों नहीं करते ? पथिक बोला : स्नान कैसे करूँ? मैं तो दलदल मे फम गया हूँ। तुम्ही मुझे निकाल दो। व्याघ्र उसके पास पहुंचकर बोला तुम इस तालाब के दलदल की कहते हो, मै तुम्हे ससार के ही दलदल से छुदाने वाला हूँ। इतना कहकर व्याघ्र ने पथिक को सहज ही मे खा लिया। x x x x कहानी सुनाने के बाद चित्रग्रीव कवूतरो से फिर बोला सीलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोग लोभ मे फसकर अपना उर्वनाश न करो। इन चावल के दानो से मृत्यु झांक रही है। चित्रग्रीव के इतना समझाने पर भी कबूतरो ने हा नहीं कोड़ा। सव-के-सव उन दानो पर टूट पडे । किसी ने ठीक ही हा है कि विपत्ति पड़ने पर बुद्धिमान् व्यक्ति को भी बुद्धि लिन हो जाती है । कबूतरों का उन दानो पर बैठना था कि कारी ने जाल समेट लिया। तव सव कबूतर जाल मे फस गये। ब-के-सव कबूतर चित्रग्रीव की सराहना करने लगे। चित्र- व ने फिर सबको समझाते हुए कहा . यह समय लड़ने र झगड़ने का नही । अब तो जिस प्रकार भी हो सके, छूटने उपाय करना चाहिए। कुछ क्षणो के लिए कवूनरों ने पम इफड़ाने बन्द कर दिये और उपाय सोचने लगे। कबूतरो को जाल मे फसा देखकर शिकारी अपने स्थान उठा और कबूतरो की ओर बढ चला। शिकारी को अपनी
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