विग्रह चित्रवर्ण और महामन्त्री के इस वार्तालाप को हिरण्यगर्भ के दूत ने सुन लिया और सब ठीक-ठीक आकर राजा से निवे- दन किया। हिरण्यगर्भ ने अपने समस्त सैनिकों को किले की सुरक्षा की चेतावनी दे दी। उन्हें पर्याप्त मात्रा में पुरस्कार आदि भी बांटे। थोड़े समय पश्चात् मेघवर्ण नाम का कौआ हिरण्यगर्भ के पास आया और प्रणाम करके बोला : महाराज, इस समय शत्रु किले के मुख्य द्वार पर युद्ध के लिए प्रस्तुत है । अतः यदि आपकी भाज्ञा हो तो मै बाहर जाकर अपना वल और पौरुप दिखलाऊँ। मन्त्री : यदि वाहर जाकर ही युद्ध करना था तो फिर किले मे क्यों ठहरे ? तुम नीति नही जानते । जल से निकलकर नाका बलहीन हो जाता है। वन से निकलकर सिंह भी गीदड़ हो जाता है और किले से निकलकर महान्-से-महान् पराक्रमी योद्धा भी हार जाता है। इस तरह मन्त्री ने मेघवर्ण को वही किले में रोक लिया हिरण्यगर्भ के सब सैनिक भी किले के द्वार पर जाकर युद्ध करने लगे। थोड़ी देर में जव सव लोग युद्ध में अपनी सुध-बुध खो वैठे तो अचानक कौए ने किले में आग लगा दी। आग लगते ही किले मे से 'किला जीत लिया' का उच्च स्वर सुनाई दिया। समस्त जलचर तो पानी मे घुस गए, पर बेचारा हंस मन्दगति होने के कारण न घुस पाया। उसे चित्रवर्ण के सेनापति कुक्कुट ने आकर सारस समेत घेर लिया। सारस हिरण्यगर्भ से वोला : महाराज, अव भागना शोभा नहीं देता । भागने के उपरान्त भी तो एक-न-एक दिन मर ही जाना है। फिर क्यो
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