१०८ हितोपदेश - चित्रवर्ण ने अपने सेनापति को सेना सुसज्जित करने की आज्ञा दी और कोपाध्यक्ष को आज्ञा दी की वह बहुत-सा कोष तैयार करे जो कि युद्ध में साथ-साथ चलेगा । जिससे कि समय- समय पर सेना को पुरस्कार आदि देकर प्रसन्न किया जा सके । क्योकि कहा- न नरस्य नरो दासः दासस्यत्वर्थस्य भूपते कोई भी किसी का सेवक नहीं होता । सब पैसे की सेवा करते हैं। शुभ मुहूर्त में राजा चित्रवर्ण की सेना ने कर्पूरद्वीप की ओर प्रस्थान किया। x x x हिरण्यगर्भ के दरबार में एक दिन एक दूत ने आकर सूचना दी महाराज, राजा चित्रवर्ण इस समय अपनी सेना को साथ ले युद्ध करने के लिए मलयगिरि की तराई में ठहरा हुआ है। उसके मन्त्री को यह कहते भी सुना गया है कि उन्होंने हमारे किले में कोई गुप्तचर भी लगा दिया है। अतः किले की जहां तक हो सके देख-रेख करनी चाहिए। मन्त्री : महाराज, यह गुप्तचर कौआ ही हो सकता है। राजा : हो सकता है कि तुम्हारा अनुमान असत्य हो। क्योंकि यदि वह शत्रु का पक्षपाती है तो तोते के साथ क्यों लड़ने लगा था ? अव भी वह युद्ध का नाम सुनते ही लड़ने को कमर कसे वैठा रहता है । मन्त्री : फिर भी वाहर से आए व्यक्ति पर शंका
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