विग्रह द्वीप छोड़कर कहीं और चले जाओ। क्योंकि कर्पूरद्वीप भी जम्बुद्वीप के शासन के अन्तर्गत है। दूत के वचन सुनते ही हिरण्यगर्भ के क्रोध की सीमा न रही। वह क्रोध मे भर कर वोला : है कोई जो इस दुष्ट की गर्दन पकड़ कर इसे सभा- भवन से वाहर निकाल दे ? यह सुनते ही मेघवर्ण नाम का कौआ खड़ा होकर सगर्व बोला: महाराज, यदि आज्ञा हो तो मैं इस दुष्ट तोते को अभी यहीं पर मार डालूं। सभा की ऐसी गम्भीर परिस्थिति देखकर मन्त्री चक्रवाक राजा और मेघवर्ण को शान्त करते हुए वोला : दूत को नही मारना चाहिए। क्योंकि वह अपनी ओर से कुछ भी नही कहता। वह जो कुछ भी कहता है राजा के वचन ही कहता है। फिर इनका तो कार्य भी यही है । वह तो चाहे शस्त्र ही उठे हुए हो कभी भी असत्य नही वोलेगा। इस प्रकार चक्रवाक ने राजा और कौए को समझाया। दोनों के शान्त होने पर राजदूत तोते को प्रसन्न करके वापस जम्बुद्वीप भेज दिया गया। चित्रवर्ण ने तोते से पूछा : दूत, कर्पूरद्वीप कैसा देश है ? वहाँ का राजा कैसा है ? तोता : महाराज, कर्पूरद्वीप के विषय में अब आप क्या पूछते हो । वास्तव में कर्पूरद्वीप दूसरा स्वर्ग है और हिरण्यगर्भ दूसरा इन्द्र ! अब आप शीघ्र ही युद्ध की तैयारी करें और कर्पूरद्वीप को अपनी राजधानी वनाएँ।
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