१०६ हितोपदेश इतना कहकर सायंकाल के समय अन्य गीदड़ों को लेकर वह गीदड़ कर की ओर चला । कर्वर सिंह आदि पशुओं के साथ कुछ मन्त्रणा कर रहा था। इन गीदड़ों ने जाकर उसे चारों और से घेर लिया और जोर-जोर से रोना प्रारम्भ कर दिया। गीदड़ों का शब्द सुनकर कर्बुर से भी न रहा गया । स्वभावतः वह भी गीदड़ों के साथ-साथ शब्द करने लगा। कवुर का स्वर सुनते ही सिंह आदि पशुओं को भी यह पता चला गया कि यह साधारणं गीदड़ है। अतः उन्होंने चिढ़कर उसे मार डाला । x x X मन्त्री वोला : इसीलिए मैं कहता हूँ कि अपना पक्ष छोड़कर आए हुए व्यक्ति का क्या विश्वास ? राजा : फिर भी दूर से आए हुए अतिथि का स्वागत तो करना ही चाहिए । इसे अपने साथ रखना है अथवा नहीं, इस विषय पर बाद में विचार किया जायगा। सारस ने आकर सूचना दी : महाराज, दुर्ग भली-भांति तैयार हो गया। राजा : तो तोते को हमारे सामने उपस्थित किया जाए। राजदूत तोता दरबार में लाया गया । उसे हिरण्यगर्भ के आसन से दूर ही आसन दिया गया । वह अपने आसन पर अकड़कर बैठ गया। दूत : हे हिरण्यगर्भ ! जम्बुद्वीप से महाराजाधिराज श्री चित्रवर्ण तुम्हें आज्ञा देते है कि यदि तुम जीवित रहना चाहते हो तो शीघ्र ही जम्बुद्वीप आकर हमारे चरणों में शीश झुकाओ । यदि तुम ऐसा नहीं कर सकते तो शीघ्र ही कर्पूर-
पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१०१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।