'(१८४ ) "हे भिक्खुओ, यदि ये सब भिक्खु आपस में मिलकर इस प्रश्न की मीमांसा करने में समर्थ हों, तो हे भिक्खुओ, यही माना जायगा कि इस प्रश्न का निराकरण हो प्रतिनिधित्व का गया। और वह निराकरण कैसे हुआ ? सिद्धांत सम्मुख विनय के द्वारा हुआ। और इस सम्मुख विनय का क्या अभिप्राय है? यही कि इसमें धम्म भी प्रतिनिधि रूप से उपस्थित है, विनय भी प्रतिनिधि रूप से उपस्थित है और विशिष्ट व्यक्ति भी प्रतिनिधि रूप से उपस्थित है* " ६ ११२, यदि समूह या संघ की निर्धारित की हुई प्रणा- लियों में से किसी प्रणाली के द्वारा एक बार किसी प्रश्न का निराकरण हो जाता था, तो वह प्रश्न निर्णय स्थायी फिर से नहीं उठाया जा सकता था। यह माना जाता था कि जो कुछ निर्णय हो गया, वह अच्छा ही हुआ। ६ ११३. चुल्लवग्ग ४. १४, ६ से विदित होता है कि यदि कोई सदस्य वाद-विवाद के समय अपने आप को वश में नहीं रख सकता था और अपने भाषण में पर- निंदात्मक प्रस्ताव स्पर विरोधी, भद्दी अथवा इसी प्रकार की और कोई अनुचित बात कहता था, तो उसके संबंध मे निंदात्मक प्रस्ताव भी उपस्थित किया जा सकता था। होता था चुलवग्ग ५, ४.१४-२१. S. B. B. २०. पृ० १२. चुल्लवग्ग, ४, २४. २५.
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