पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१९५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

7 (१६४ ) नीतिक गुप्तचर समझते हैं। अर्थ-शास्त्र से हमें पता चलता है कि प्रायः गुप्तचर लोग साधुओ और संन्यासियों आदि के वेष में घूमा करते थे। अराजक राज्य के सिद्धांत पर शासित होनेवाले देश बहुत ही छोटे छोटे रहे होंगे। हिंदुओं में भी उस समय मेजिनी और टॉल्स्टाय की कोटि के लोग रहे होंगे, जिन्होंने इस प्रकार की कीर्तिशाली तथा बहुत से अंशों में असंभव शासन- प्रणालियों का आविष्कार करके उन्हें प्रचलित किया होगा। 8 १०२, जैन सूत्र में एक और वाक्य आया है (२. १. २. २.) जिस मे तीन प्रकार के शासक बतलाए गए हैं-उग्र (उग्ग), भोज और राजन्य (इसके उपरांत उग्र और राजन्य क्षत्रियों और इक्ष्वाकुओं आदि का उल्लेख शासन-प्रणालियाँ है)। पारिभाषिक अर्थ वा शासन-प्रणाली की दृष्टि से राजन्य शब्द का जो कुछ महत्व है, वह हम अभी देख चुके हैं। भोज के संबंध मे भी हम जानते हैं। शासन-प्रणाली का पता हमें वैदिक साहित्य से चलता है । (६२०२. भाग २.) केरल (मलावार) भी उग्र कहलाता है। संभवतः केरल में किसी समय यही उग्र शासन-प्रणाली रही होगी। केरल के उग्र

उग्गकुलाणि वा भोजकुलाणि वा राइन्नकुलाणि वा खत्तिय-

कुलाणि वा क्खागकुलाणि आयारंगसुत्तम् (जैकोबीवाला संस्करण) 1