पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१८५

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(१५४) मिलिंद पन्हो के अनुसार ईसा से पूर्व दूसरी शताब्दी में यह राजनगर मेनेंडर की अधीनता में गया। जान पड़ता है कि उस समय मद्रों ने अपना मूल निवास स्थान छोड़ दिया था और वहाँ से चलकर वे लोग दक्षिण प्रदेश में चले आए थे, जहाँ वे गुप्त काल में धन-धान्यपूर्ण अवस्था में रहते थे । ६६७. यह बात प्रत्यक्ष है कि पश्चिम के राष्टिक लोगों में, जो अशोक के शिलालेखों में भोजों और पितेनिकों के वर्ग में उल्लिखित हैं, कोई वंशानुक्रमिक या एक- राष्ट्रिक शासन- प्रणाली राज राजा नहीं हुआ करता था। अशोक ने उनके किसी राजा का उल्लेख नहीं किया है। खारवेल ने भी उनका उल्लेख बहुवचन में ही किया है। वे लोग भोजकों के साथ मिलकर और राज्य के पूरे लवाजमे के साथ खारवेल से लड़े थे। अब इस बात में किसी प्रकार का संदेह नहीं रह गया कि इन लोगों में प्रजातंत्र शासन-प्रणाली प्रचलित थी। जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है, पाली त्रिपिटक के कर्ता को शासक के राष्ट्रिक या रटिक वर्ग का ज्ञान था और उसने उसका उल्लेख भी किया है।

फ्लीट द्वारा संपादित Gupta Inscriptions. पृ०८.

+देखो ऊपर ६१. + जायसवाल, Hathigumpha Inscriptions, J. B 0. R.S ३. पृ० ४५५. + अंगुत्तर निकाय, भाग ३. ५८. १. देखो ऊपर १ का दूसरा नोट।