पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१८०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१४६) ठीक ठीक शब्दार्थ होता है-"बिना राजा की अथवा राजा- रहित शासन-प्रणाली | ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार सारा देश या जाति ( जनपद ) राज-पद के लिये अभिषिक्त होता था। इस बात में किसी प्रकार का संदेह नहीं हो सकता कि यह शासन-प्रणाली वास्तव में प्रजातंत्री थी। ऐतरेय ब्राह्मण में उदाहरण के रूप में कहा गया है कि उत्तर मद्रों और उत्तर कुरुत्रों में यह शासन-प्रणाली प्रचलित थी। व्याकरण मे मद्रों का उल्लेख दिशा के विचार से हुआ है, जिससे सिद्ध होता है कि मद्रों में कम से कम दो विभाग थे ।। पाणिनि के समय में मद्र लोगों में प्रजातंत्री शासन-प्रणाली प्रचलित थी और उनमे ई० पू० चौथी शताब्दी तक, जब कि गुप्त वंश के लोगों से उनका मुकाबला हुआ था, बरा- बर प्रचलित रही है। जान पड़ता है कि उत्तर मद्रों में जो

  • मिलाओ-"इस शब्द के दो अर्थ किए जा सकते हैं, (१)

जिसमें राजा न हो (२) बहुत महत्वशाली राजा। इस पद में हमें पहला ही अर्थ लेना चाहिए। क्योंकि यहाँ जानपदाः शब्द आया है अर्थात् अभिषिक्त राजा के विपरीत साधारण लोग; और इस प्रकरण के दूसरे वाक्यों में इसके बदले में "राजानः" शब्द आया है। एम० हाँग; ऐतरेय ब्राह्मण; खण्ड २, पृ० ११८. पाद टिप्पणी । + पाणिनि ४ २.१०८ मद्रेभ्योऽन । साथ ही देखो इससे पहले का सूत्र और ७. ३. १३. दिशोऽमद्रानाम्, जहाँ उत्तर के जानपदों का वर्णन है। + फलीट द्वारा संपादित Gupta Inscriptions, पृ०८.