पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१७८

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(१४७) खराट् कहलाता था। इसका शब्दार्थ है-स्वयं शासन करनेवाला। तैत्तिरीय ब्राह्मण में वाजपेय यज्ञ की प्रशंसा में लिखा है कि जो बुद्धिमान् विद्वान् वाजपेय यज्ञ के द्वारा बलि प्रदान करता है, वह स्वाराज्य प्राप्त करता है; और इस स्वाराज्य शब्द की व्याख्या में लिखा है-अपने समान लोगों का नेता बनना। वह बड़प्पन या 'ज्यैष्ठ्य' प्राप्त करता है । इस छोटी सी सूचना से यह पता चलता है कि समान लोगों मे से ही कोई स्वराट् शासक चुना जाता था जो सभापति या प्रधान शासक बनाया जाता था; और यह चुनाव द्र होने की योग्यता पर निर्भर करता था; क्योंकि यह कहा गया है कि इंद्र ने ही पहले पहल अपनी योग्यता प्रमाणित करके अपना स्वाराज्य अभिषेक कराया था। जान पड़ता है कि यह उल्लेख गण या काउंसिल के सभापति के निर्वाचन या चुनाव के ही संबंध में है। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि महाभारत में कहा गया है कि गण के सब सदस्य समान समझे जाते थे (सहशास्सर्वे )। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार इस प्रकार की शासन-प्रणाली पश्चिमी भारत के नीच्य या अपाच्य लोगों में प्रचलित थी। नीच्य लोगों का निवास स्थान, जैसा कि उनके नाम से सूचित होता

- य एवं विद्वान् वाजपेयेन यजति । गच्छति स्वाराज्यम् । अन

समानानाम् पर्येति । तिष्ठन्तेऽस्मै ज्येष्ट्या । तैत्तिरेय ब्राह्मण १. ३.२.२. +देखो आगे 8 १२४.