पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१७६

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( १४५ ) शिलालेख को देखते हुए भी मुझे यही अर्थ ठीक जान पड़ता है; क्योंकि उसमें जहाँ राज्य के लवाजमे का जिक्र है, वहाँ राष्ट्रिक और भाजक का भी नाम आया है। इसके बाद के शिलालेखों मे भोजों और महाभोजों का उल्लेख है, जिससे यह जान पड़ता है कि इस प्रकार के नेता या शासक साधारण वर्ग के भी होते थे और उच्च वर्ग के भी। राज्या- धिकार भी शासकों या नेताप्रो को प्राप्त होता था। जैसा कि ऐतरेय ब्राह्मण में आया है, स्वयं उस शासन-प्रणाली को भौज्य कहते थे। यहाँ यह बात विशेष रूप से ध्यान में रखने की है कि जाति का यह भोज नाम उनके इस प्रकार के नेताओं या शासकों के कारण पड़ा था; और आगे चल- कर परवर्ती साहित्य में ये भोज लोग उन यादवों की एक शाखा या उपजाति के रूप मे उल्लिखित हैं, जिनका अपने प्रारंभिक इतिहास में अंधक-वृष्णी नामक दो प्रजातंत्रों का एक द्वंद्व था (६३६-४०); और ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार सत्वत् लोगों मे (यह सत्वत् इन्हीं यादवों का प्राचीन नाम है) भौज्य शासन-प्रणाली प्रचलित थी। ६२. यह भी संभव है कि इस प्रकार की शासन- प्रणाली पूर्वी भारत में भी प्रचलित रही हो; क्योंकि इसका उल्लेख पाली त्रिपिटक में भी आया है; और पाली त्रिपिटक में

जायसवाल, Hattigumpha Inscription, J. B.

0 R.S. भाग ३. पृ० ४५५.