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हिंदुई साहित्य का इतिहास

ग्रहण किए हुए है, और उनका अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग है। भारतीय कहानियों और नैतिक कथाओं के खास-खास संग्रहों के ज्ञान से इस बात की परीक्षा की जा सकती है। उनमें कथाओं के अत्यन्त प्रवाह पूर्ण रूपों के बीच में बुद्धि की भाषा मिलती है; क्योंकि, जैसा कि एक उर्दू कवि के कहा है, 'केवल शारीरिक सौन्दर्य ही हृदय नहीं हरता, लुभा लेने वाली मधुर बातों में और भी अधिक आकर्षण होता है।'

पद्य में प्रधान हिन्दुई रचनाओं के नाम, अकारादिक्रम के अनुसार इस समय इस प्रकार हैं :

'अभड़्ग' एक प्रकार की एक चरण विशेष में रचित गीति-कैविता जिसकी पंक्तियों में, अँगरेज़ी को भाँति, शब्दों के स्वरघात का नियम रहते है, न कि शब्दांशों की संख्या (दीर्घ या हस्व) का, जैसा संस्कृत, ग्रीक और लेटिन में रहता है। इस कविता का प्रयोग विशेयतः मराठी में होता है।

'आल्हा', कविता जिसका नाम उसके जन्मदाता से लिया गया है।[१]

'कड़खा', लड़ने वालों में उत्साह भरने के लिए राजपूतों में व्यवहृत युद्धगाम। उसमें शौर्य की प्रशंसा की जाती है, और प्राचीन वीरों के महान् कृत्यों का यशगान किया जाता है। पेशेवर गाने वालों को 'कड़खैल' या 'ढाढ़ीं' कहते हैं जो ये गाने सुनाते हैं।

'कबित' या 'कविता', चार पंक्तियों की छोटी कविता।

'कहर्वा, 'मलार', जिसके बारे में (आगे) बताया जायगा, के रूप की भाँत कविता। वास्तव में यह एक नृत्य का नाम है जिसमें पुरुष स्त्रियों के कपड़े पहनते हैं, और स्त्रियाँ पुरुषों के; और फलतः इस नृत्य के साथ वाले गाने को यह नाम दिया गया है।

  1. शेक्सपियर (Shak.), ‘डिक्शनरी हिन्दुस्तानो ऐंड इँगेलिँश'