पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५८

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[३१
भूमिका


इस पहले भाग में ही अनेकानेक पूर्वी कहानियों का उल्लेख किया जाना चाहिए : 'एक हज़ार-एक रातें', जिसके हिन्दुस्तानी में अनुवाद हैं; 'ख़िरद अफ़रोज़', 'मुफ़रः उल्‌कुलूब' (Mufarrah ulculûb) आदि।

दूसरे भाग में भारतीय मुसलमानों में अत्यन्त प्रचलित काव्य, 'मर्सिये' या हसन, हुसेन और उनके साथियों की याद में विलाप, रखे जाने चाहिए।

तीसरे में 'पंदनामे' या शिक्षा की पुस्तकें, रखी जाती हैं, जो सारा (Sirach) के पुत्र, ईसा की धर्म-संबंधी पुस्तक की भाँति शिक्षाप्रद कविताएँ हैं; 'अख़लाक', या आचार, पद्यात्मक उद्धरणों से मिश्रित, गद्य में नैतिकता-संबंधी ग्रन्थ हैं, जैसे 'गुलिस्ताँ' और उसके अनुकरण पर बनाए गए ग्रन्थ : उदारहण के लिए 'सैर-इ इशरत', जिसके उद्धरण मैंने इस जिल्द में दिए हैं।

चौथे में केवल वास्तव में शृंगारिक कही जाने वाली कविताएँ ही नहीं, किन्तु समस्त रहस्यवादी ग़ज़लों को रखना चाहिए जिनमें दिव्य प्रेम प्रायः अत्यन्त लौकिक रूप में प्रकट किया जाता है, जिनमें आध्यात्मिक और इन्द्रिय-संबंधी बातों का अकथनीय मिश्रण रहता है।[१] इन कवियों का संबंध सामान्यतः सूफ़ियों के, जिनके सिद्धान्त वास्तव में वही हैं जो जोगियों द्वारा माने जाने वाले भारतीय सर्वदेववाद के हैं, मुसलमानी दार्शनिक संप्रदाय से रहता है। इन पुस्तकों में ईश्वर और मनुष्य, भौतिक वस्तुओं की निस्सारता, और आध्यात्मिक वस्तुओं की वास्तविकता पर जो कुछ प्रशंसनीय है उसे समझने के लिए एक क्षण उनकी घातक प्रवृत्तियों को भूल जाना आवश्यक है।


  1. इस प्रकार के भावों में अनिवार्यतः जो दुर्बोधता रहती है, वह इन अंशों में एकरूपता के अभाव के कारण है। वास्तव में सामान्यतः पद्यों में परस्पर कोई संबंध नहीं होता।