पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५४५

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३७० हिंदुई साहित्य का इतिहास मंडन को दीजिये । यही एक पद मुख निकसत शोच प ध कैसे जात लाल लिख्यौ मति रीझिये ॥ संस्कृत पद झाविमो पुरुष लोके शिर शल क पशै। गृहस्थश्च' निरा रंभोयति नश्च परिग्रहः । शीश मंडलस्मरगरल डन मम शिरसि मंटून देहि पद पल्लवं मुदार । वे नीलाचल धाम तामें पंडित दंपति एक करीबी नाम घरि पोथी सुखदाइये । द्विजनि कुलाइ कही वही है प्रसिद्ध क लिखि लिखि पठौ देश देशनि चलाइये * बोले मुसकाइ ब्रिश फिश सों दिखाइ दई नई यह कोई मति अति भरमाइये । घरी दोड मंदिर में जगन्नाथ दे व जू के दीनी यह डारि वह हार लपटाइये ॥ पो शोच भारी प निपट खिसानो भयो गयो उढि सागर में तो यह बात है । प्रति अपमान कियो जियो मैं बचान सोई गोइ जाति कैसे याँच लागी गात गात है । आाशा प्रभु दई मति है तू समुद्र मांग दूसरी न ग्रंथ बैसो था तन पात है । द्वादश श्लोक लिखि दीजे सर्ग द्वादश में ताही संग चंदें जकी रूयात पात पात है। सुता एक माली की बैंगन५ की बारी मांझ तोरे बनमालो गावै कथा सर्दी पांच की। डोलें जगन्नाथ पाछे काले अंग मि ी कैगा आऊँ कहैि घूमै सुधि आवे जिरह ग्रांच की फौ पट देखि ठप पूछी ग्रहो १, माह्मणों की सामाजिक व्यवस्था का इसे दूसरा प्रश्रम समझना चाहिए, , विवाहित व्यति: । यह शब्द ‘ग्रष्-घर-से और ‘स्थ’-रहने वाला-से बना है। २ ग्रंथ में यह पद हिन्दुई में अनुवाद सहित संस्कृत में है। ‘गीत गोविन्द' मैं यह सर्भ १०,१६, ६० ८ में पाया जाता है।

  • : विल्र्सत इस नगर को पड़ोसा के तट पर बताते हैं, ‘एशियाटिक रिसों', जि०

१६, ६०.५२ ! ४ अर्थात्, उसकी प्रतियाँ घुमाना । ५ ऐग लाट (Solandm Melongena)