पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५३९

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३८४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास टीका चोरछा ' के भूप, मधुकर ने अपने पास आने वाले विष्णु के सेवकों के पैर धोकर, और इस प्रकार से मिले जल को पीने का भार लिया । इस व्रत पर द्ध दो उनके सब भाई एक गधा लाएउसकी गर्दन में माला पहना और माथे पर चंदन लगा कर, उसे मल में घुसा दिया, और स्वयं दरवाजे पर रह गए । मधुकर दौड़े, इस गधे के पैर धोए, और यह कहते हुए उसके पैरों पर सिर रख दिया : तो क्या ‘ मेरे नगर के सब लोग वैष्एब हो गए हैं, क्योंकि धर्म ने इस गधे के द्वारा अपने को ही प्रकट किया है १ इस प्रकार, मनुष्यों के आभूाबू में, राधे में पूर्णता टूटनी चाहिए । राजा के गुरु, व्यास, वहाँ थे, और इस परिस्थिति में छन्होंने यह पद पढ़ा। : सच्चा सुख केवल विष्णुसेवकों के घरों में मिलता है, वहाँ "'के अतिरिक्त अयार धन-राशि नपुंसक पुत्र की भाँति है ।--यह सुख ' उसी को मिल सकता है जो भक्-िपूर्वक बैष्ण1 वर्षों का चरणामृत पीत . है और उसी को मोक्ष मिलता है । जो सुख न निद्रा में है, न असंख्य. वित्र स्थानों में नहाने में है, विष्णु के मतों के दर्शन से मिलता है; इससे सटे दुःख दूर हो जाते हैं ।--यह सुख वह नहीं है जो पविों लघुमथुरा रता भी प्रति जैमल पोप । टोड़े भजन निधान रामचन्द्र हरिजन नये। असे राम के रस नेम मीमा के भारी। करभंगा पुरता भगवान बोर भूपति अतधारी। ईश्वर अखैराज राइ मल कांहर मधुकर ग्रुप सोंस दिया। भलन को आदर अधिक राजबंश में इस कियो -—अनु० ' का अथवा उरछा, प्राचीन ‘अरिजय( Arijaya ), इलाहाबाद प्रान्त नगर, और जो पहले बुदेल जाति को राजथानो था ।