पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४७७

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३२२ 1 हिंई साहित्य का इतिहास है । यह गजल की तरह की, और राग शब्द शीर्षक लिए हुए का रग’ या ‘रागिनी, ' के किसी एक विशेष नाम सहिंतछोटी-छोटी कतिों द्वारा निर्मित एक प्रकार का दीवान है । उर्दू कवियों के अनुकरण पर, कधि का नाम अतिंम पंक्ति में आता है। इस रचना की एक प्रति कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में है, जिसे उसी पुस्तकालय के सूचीपन में ( स्पष्टत:. क्योंकि, गध मिलता है, लडेन (Leyden) के सुंदर संग्रह की संख्या २०३२, पइला शर्पक जिल्द के मुख पृष्ठ पर और अंत में पढ़ने को मिलता है, और दूसरा पहले पृष्ठ की पीठ पर लिखा हुआ है। दूसरा शीर्षक पेरिस के राजकीय पुस्तकालय में सुरक्षित इस संग्रह की दो हस्तलिखित प्रतियों पर पाया जाता है, अर्थात् : संख्या १८, डॉती ( fomds entil ), १९८० हजरों में, सूरत ( Surate) में प्रतिलिप की गई हस्तलिखित प्रति, और फ़ौद पोसिए (1onds Polier ) की संख्या २ । अंतिम पहली वाली से कहीं अधिक बड़ी है , वह उससे प्रधानत: भिन्न है । गाँतों बाली को नकल पक मुसलमान द्वारा की गई है, जो इन पवित्र शब्दों से प्रारंभ होती है ‘बेमिल्लाह उलरहमान अलरहमदयावान और क्षमाशील ईश्वर के नाम में’ । इसके विपरोत पोलिए बालो ‘श्री राधा माधो यहार’ ( फ़ारसी लिपि मैं ) श्री राधा की मधुर नहरें, शब्दों से प्रारंभ होती है । प्रारंभिक पृष्ठ पर पढ़ने को मिलता है : किताद सूर सागर तमाम राग दर्मियान छून अस्त' ( फ़ारसी लिपि में ) अर्थात् ‘न्र सागर की किताब जिसमें सब राग हैं' । दुर्भाग्यवश उस कई विभिन्न लिपिकार हैं, और वह कई अन्य हस्तलिखित प्रतियों से निलकर बनों प्रतीत होता है । कुछ स्थानों पर पंक्तियों के बीच में फारसी में टिप्पणां (notes) लिखा हुई है । उसका समाप्ति ‘भागवत के एक अंश से हुई मालूम होती है । पहली संभवत: केवल कुछ चुने हुए राणे तक सीमित है । ब क्रो के मुझे दोनों प्रतियों में एक-से अंश नीं मिले ; यह आश्चर्य जनक नहीं क्योंकि कहा जाता है कि सूर दास ने सवा लाख पद लिखे । विल्सन एशियाटिंक रिसर्बद्ध, जि० १६, ७० ४८ । इस रचना में उल्लिखित अनेक राग या रागिनियों के नाम गिलाइस्ट द्वारा अपने यूमर' ( व्याकरण ), २७६ तथा बाद के पृष्ठ, में दी गई उनकी सूची में नहीं मिलते। संभवतः इन रगों में से कुछ के विभिन्न पर्यायवाची नाम हैं : इसके .तरि संगीत राग-रागिनियों के विभाजन की कई पद्धतियाँ हैं।