पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४५०

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शिव नारायणदास 1 २५ १८५४ में शिव नारायण अजमेर के ‘जग लाभ चिन्तक '. दुनिया के लाभ के लिए विचार - शीर्षक हिन्दी पत्र के संपादक थे। उन्होंने संस्कृत और हिन्दी में घट पंचाशिका'-छप्पन उक्तियाँ -का संग्रह किया है ; आगरा१८६८३२ बड़े अठपेजी पृष्ठ ; 'मजमुआ-इ दिलबहलाव (साहित्यि) मनोरंजक बातों का संग्रह का हिन्दी में गीत और पहेलियों का, आगरे से ही १८६८ में मुद्रित, ३२ अठपेजी पृष्ठs तथा अन्य अनेक रचनाओं का जिनका उनसे संबंधित लेखकों पर लिखे गए लेखों में उल्लेख हुआ है । शिव नारायणदास' शिवनारायणी संप्रदाय के संस्थापक, शिव-नारायण (नरिवाण triyana ) नारायण’ नामक जाति के राजपूत, गाजीपुर के सेसन ( Stsana) 3 गाँव के निवासी थे । वे सुहम्मद शाह के रजत्व -काल में रहते थे, और उनकी रचनाओं में से एक की तिथि संवत् १७४१ ( १७३५ ईसवी सन् ) है । उन्होंने अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने के लिए अनेक रचनाएँ प्रदान की हैं । हिन्दी पद्य में उनकी ग्यारह विभिन्न रचनाएँ बताई जाती हैं : १. ‘लौ या लब ग्रन्थ’ के २. ‘सन्त विलासके २. बजन ग्रन्थ ' ; ४. ‘सन्त सुन्दर, ; ५. गुरुन्यास' : ६. ‘सन्न अचारी' : ७. ‘सन्तो- पदेश' ८. ‘शब्दावली' ; 8. सन्त परवान' ; १ ७. ‘सन्त सहिमा’ ; ११. ‘सन्त सागर' । G १ भ० ‘विष्णु और शिव का दास’ २ Naryana—मेरे विचार से इस शब्द के यही हि है। ( मूल के प्रथम संस्करण में नरिवाण’ है-अनु॰ ) ३ ‘शियाटिक रिसज़जि० १७ , पृष्ठ ३५ 1 ( नूल के प्रथम संस्करण में उन्हें चंदावन गाँव का निवासी बताया गया है- अनु० )