पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४१९

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२६५ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास की ‘जनल कमिटी अब पब्लिक इन्सट्रक्शन’ ( शिक्षासमिति ) की आज्ञा से ‘हिन्दी और हिन्दुस्तानी सेलेक्शन्स' के संपादक, डब्ल्यू’ प्राइस द्वारा प्रकाशित हुआ है उसका आकार और उसके अक्षर बहुत छोटे हैं, संभवतः केवल १४२ ही झूठ हैं। श्री ए० ई० हॉल (Hall) ने उसका एक संस्करण १८५४ में, इलाहाबाद से प्रका शित किया जिसमें नेट्स और शेक्सपियरकोष सहित एक शब्द कोष है, vii, १६७, १० और १४ अपेज पृष्ठ । ए० एस० जन- सन ने इस रचना के मूल का एक अनुवाद प्रकाशित किया है, और श्री लाँसरो (Lancereau ) ने १८४ में पेरिस के ‘जून एसिया- तीकर में उसका विश्लेषण दिया है । लल्लू की ये भी रचनाएँ . : ४.सभा बिलास’ या बिलास, ' अर्थात् सभा के आानन्द । यह ब्रजभाखा के विभिन्न प्रसिद्ध रचयिताओं के काव्य-अबतरणों का चुना हुआ संग्रह है । यह जिद खिजिरपुर से देवनागरी अक्षरों में छपी है । उसका एक संस्करण इन्दर का १८६० का है । ५. 'सप्त शतिक', ३ या सात सों दोहे । मैंने यह रचना कभी नहीं , थपि बह कलकत्ते से छपी हो सकती है। मेरे ख्याल से उसकी एक भी प्रति लद्दन में नहीं है। मैंने केवल उसे पुस्तक विक्रेता की पुरानी सूचियों से जाना है ; किन्तु मेरा अनुमान है। कि यह गोवर्धन की रचनाजिसका शीर्षक भी सप्त शति' या सात साँ दोहे है, का एक अनुवाद हैं । कलकन्ने की एशियाटिक सोसायटी के, एफ़० एस० ग्राउज ( Grov se ) ने उद्धरणों में से एक का लातीनी पक्ष में अनुवाद किया है। १ सभा विलास २ देना आव दि कों अब कोर्ट विलियम, परिशष्ट, ० २८ और ४७३ 3 सप्त शतिक सप्त शत