पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४०७

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२५२ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास से वह दिन दिन घढ़ता ही जाता है , और एक दाम' भी कभी कम नहीं होता । न तो दिन में श्रौर न रात में कोई चोर उसे ले सकता। ३२ ; वह घर में सुरक्षित रद्दता है । दास कहते हैं, जिनके पास भगवान् रूपी धन है उन्हें किसी पत्थर की क्या आवश्यकता ? रैदान ने कहा : थ पत्थर का टुकड़ा छत पर रख दो । ' भगवान् तेरह महीने बाद जब ाए तो उन्होंने रैदास को उसी मुसी बत में पाया । पत्थर भी उसी जगह रखा हुआ था । उसी समय रैदास पूजा करने गएऔर देवता, के सिंहासन के नोचे पाँच स्वर्ण के टुकड़े देखेऔर अपना धार्मिक कृत्य जारी न रख सके । किन्तु भगवान ने उन्हें एक स्वप्न दिखाया, और स्वप्न में उनसे कहा : तुम मुझे छोड़ दोगे या मैं तुम्हें छोड़ दंगा १३ यह बात सुन उन्होंने सोने के दुकड़े लेने का निश्चय किया, और उनसे एक नया मन्दिर बनवा कर वह एक महन्त रख दिया। दिन में वे भगवान् को अर्पित किया गया मोग बाँटते थे । उनकी रूयाति नगर भर में फैल गई। छोटेबड़े सव आते थे, और पवित्र भोग ग्रहण करते थे । तत्र भगवान् ने उन्हें प्रसिद्ध केरना चाहा। उन्होंने सोचा कि साधुओं के वैभव के कमरे को खोलने के लिए ष्ट जन ही उचित क'जी हैं ! तत्र उन्ोंने रैदास के विषय में ब्राह्मणों की मति फेर दी, तदनुसार वे राजा से इस प्रकार शिकायत करने गए : संस्कृत श्लोक जहाँ जिन चीजों का आदर न होना चाहिए उनका आदर होता है, और जिन चीजों का आदर होना चाहुिए उनकी ओोर कोई ध्यान नहीं देतावह तीन चीजों का निवात रहता है । : दुर्भिक्ष) मृयु, भय । ने एक पैसे का चौतासवाँ भाग, जो आने में बारह होते हैं। सोलह आने का एक रुपया 1 २ Conf MatthV1, १६,२०