पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३९२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रमजन । की एशियाटिक सोसायटी के जर्नल ( फरवरी१८३५ ) में की प्रकाशित किया है, जिनमें रामसनेहियों के सिद्धान्तों रूपरेखा मिलती है । रामजन "। यह हिन्दू रामसनेही संप्रदाय के संस्थापक, राम चरण के आध्यात्मिक आधिपत्य के उत्तराधिकारी और उनके बारह चेलों में से एक थे। उनका जन्म सिरसाँ (Sircin) गाँव में हुआ,१७८ में उन्होंने नया धर्म ग्रहण कियाऔर बारह वर्षदो महीने और छ' दिन तक आध्यात्मिक गद्दी पर बैठने के बाद वे शहर में १८०६ में मृत्यु को प्रत हुए। उन्होंने अठारह हजार शब्दों या पदों की, राम चरण की भाँति अधिकतर हिन्दी में, रचना की । राम जसम या राम जस ( पं॰ लाला ) लाहौर के शिक्षाविभाग के कर्मचारीरचयिता हैं : १. हिन्दी में लिखित भूगोलभूगोल चन्द्रिका’-भूगोल का दीपक के बनारस१८५६, १५० छोटे चपेजी पृष्ठ ; २. तलसीदास कृत ‘रामायण, अथवा केवल ‘बालकांड’ और 'अयोध्या कांडशीर्षक भागों या सर्दी के ; बनारस१८६१२२० आठपेजी पृष्ठ । इससे पूर्व उन्होंने इसी नगर से ( १८५६ में ) इस काव्य का एक पूरा संस्करणकठिन शब्दों के हिन्दी में अर्थ और पुस्तक के संक्षिप्त सार सहित, प्रकाशित किया था, ४८७ अठपेजी पृष्ठ।

  • भा० राम का जन।

२ जर्नल ऑव दि एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल’, फ़रवरी १८३५ 3 भा० इन शब्दों का, जो समानार्थवाची है, राम की महिमा' अर्थ है ।