पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३७२

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मीरा या मीरां वाई [ २१७ ने थोड़ी देर के लिए उनसे भेंट को, जिसके बाद वे उन्हें अपने साथ ले गई और कृष्ण की लीलाबों के लिए प्रसिद्ध वृन्दावन के सब स्थानों के दर्शन किए । फिर अपने पति राणा की मलीनता देखकर द्वारिका में रहृने गई । इसी बीच में, उदयपुर में पाप अदते हुए देखतथा भक्ति का स्वरूप पहिचान कर, राजा ने ब्राह्मण बुलवाए । वे राजा की आज्ञा से आाएऔर धरना देकर बैठ गए । उधर मीरा रणछोर जो की आज्ञा लेने के लिएद्वारिका के मन्दिर में गई, और देवता ने उनकी इच्छाएं पूर्ण कीं। प्रद रणछोर, मुझे द्वारिका में रह ने की आशा दो, जहाँ , चक्र, गदा औौर प ( विष्णु के विशेश चिह्न ) से यम का भय नष्ट हो जाता है। । गोमती से लेकर सध तीर्थ स्थानों में लोग बूब जाते हैं, किन्तु शर-घड़ियाल की ने य ां में जती है: रस की क्रीड़ा का आानन्द यहीं प्राप्त है ता हैं । १ भारतवर्ष पर वि.भन्न रचनाओं में इस कार्य की व्याख्या को गई है। यह इस तरह होता है। जो ए भारतीय कोई मनवां छत कार्य पूर्ण करना चाहता है, अधिकतर रुपयों के नामों में, तो यह जप्त व्यक्ति से कार्य पूर्ण कराना चाहता है उसे अपना इच्छा र्ण न होने पर नर जाने का धमका देता है : कमों वह आग जलाकर उसमें प्रवेश करता है; कभा उसमें वह किसी गाय या त्री को रख देता है । यह कार्य देवताओं का इच्छा से किया ज:ता है। तो जिस पाठांश से यह नोट लिया गया है उसका मतलब है कि ब्राह्मण ने उदयपुर नगर के संकट दूर करने के लिए देवताओं को प्रसन्न करने का दृष्टि में इस प्रकार को अन प्रज्वलित की । ३ इस शब्द का अर्थ है ‘ने कुछ छोड़ दिया हो , यह विष्णु के नामों में से। एक, और हेरिका में पूजित कृष्ण की मूर्ति, का नाम है। प्रेम सागर में बपित एक कथा में यह नान आया है। 3 ये पद भरा कृत हैं।