पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३६८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। मीरा या मीरां बाई [ २१३ और कवियित्री के रूप में उन्होंने, उनके संप्रदाय वालों द्वारा सर्वत्र गाए जाने वाले भजनों की रचना की है, ज, टॉड के अनुसार, जयदेव कृत गीत गोविंद ’ को समता करते हैं उन्हें कृष्ण के प्रति असीम भक्ति थी, जिनका उन्होंने एक संदिर बनवाया था जिसे कर्नल टॉड अपनी यात्रा के समय देखने गए थे। हिन्दुओं का मत है कि उनकी काव्य-रचनाओं की समता उनका समकालीन कोई दूसरा कवि नहीं कर सका लोग उन्हें गीत गोबिंद’ की ‘टीका’ की रचयिता कहते हैं 1 इस कविता के साथ उनके कुछ पदकान्या ( कृष्ण ) की भक्ति में भजन हैं, जो जय- देव के मूल संस्कृत की तुलना में रखे जा सकते हैं। ये पद तथा कृष्ण के आध्यात्मिक सौन्दर्य का वर्णन करने वाले अन्य मीत अत्यन्त भावुकतापूर्ण हैं । कहा जाता है कि मीरा ने सब कुछ त्याग ढ़िया था और कृष्ण से संबंधित पवित्र स्थानों की, वहीं वे दिय अप्सराओं के अनुकरण पर, उनकी मृति के सामने, रहस्यपूर्ण ‘रास मएंडल’ नृत्य किया करती थीं, यात्रा करने में जीवन व्यतीत किया । उन्होंने उदयपुर में शरीर छोड़ा । इसके अतिरिक्त, भक्तमाल में उनसे संबंधित उल्लेख इस प्रकार है: छप्रय लोकलाज कल श्रृंखला जि मीरा गिरिधर९भजी । सदृश गोपिकी प्रेम प्रगट कलियुगहि दिखायो । नर शंकुश आति निडर रसिक यश रसना गायो । दृष्टन दोष विचार मृणु को उद्यम कीय । बार न को भयो गरल थमत ज्यों पीयो । द थे । १ टॉड, ‘त्रिल्स, ३० ४३५ २ तासी ने ‘कृष्ण' शब्द देकर, फटनोट में लिखा है -- ‘गिरधर’ नाम के अंतर्गत श्रेम सागर' में वर्णित एक कथा के अनुसार । यह थप्पय १८८३ में नवल किशोर प्रेस, लखनऊ से प्रकाशित ‘भक्तमाल' से लिया गया है। -- अनु०