पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३५६

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सतिराम [२०१ और 'हरिवंश पुराण' के संपादन में सहयोग प्रदान कियाअर्थात् उहोंने इस रचना को निर्मित करने वाले बहुतसे अंश दिए । पहली जिल्द में, केवल एक है ; दूसरी में, चार ; किन्तु तीसरी और चौथी जिदों में बहुत बड़ी संख्या है । मतिराम' श्रेष्ठ हिन्दी कवि जिनकी वॉर्ड और कोलब्रुक द्वारा उल्लिखित रचना, ‘रस राज३ देन है , और जिसकी कलकले की एशियाटिक सोसायटी के विद्वान और उत्साही मंत्री (स्वर्गीय ) श्री जे. प्रिन्सेपकी कृपा से प्राप्त, नागरी अक्षरों में लिखी हुई एक प्रति मेरे पास है । उसका विश्लेषण करना तो कठिन होगा, और उससे उद्धरण चुनने में संकोच होता है वह वास्तव में एक प्रकार का 'कोकशास्त्र है जिसका जितना सम्बन्ध स्त्रियों के मानसिक गुणों से है उतना ही उनके शारीरिक गुणों से । तो भी, उचित सीमा में रहते हुएइस विषय के सम्बन्ध में जो कुछ कहा जा सकता है, वह श्री पैवी ( Pavie ) द्वारा जनवरी १८५६ के ‘जून एसियातीक' ( Journal Asiatique ) में पद्मिनी की कथा पर लिखे गए लेख में मिलता है, और जिसका कमसेकम संभव शब्दों में सार इस प्रकार हैं : पुरुषों के चार प्रकारों के अनुरूप स्त्रियाँ भी चार प्रकार की हाती हैं : ‘पद्मिनी, १ प्रतिराम । भा०शुद्धि के राम' । यह और मोतीरामजिनका मैं कुछ आगे उल्लेख करगाएक ही तो नहीं हैं ? ३ रसराज, रस का राजा । इस रचना के लिए, देखिए‘एरियाटिक' रिसचेंज', जि० १०, ४० ४२० वे इसके अतिरिक्त, यह रचना १८१४ मैं खिदरपुर से बचा है, और उसमें ८६ अठवेजो पृष्ठ है ।