पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३४४

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बीरभान [ १८६. जिन नगरों में साध बहुत पाए जाते हैं वे दिल्ली, आगरा जयपुरफर्रुखाबाद हैं । इन नगरों में से किसी एक में एक बड़ा भारी वार्षिक समाज जुड़ता है। साधुओं के धर्म पर हिन्दुस्तानी रचनाएँजो मेरे जानने में आ सकी हैं, निम्नलिखित हैं : १. ‘पोथी शान बानी साध सतनामी के पंथ की', अर्थात् साध सतनामी सम्प्रदाय के ज्ञान पर उपदेशों की पुस्तक ' डब्ल्यू० एच० टूट (W. H.. Trant), जिन्हें फर्रुखाबाद के इस सम्प्रदाय के गुरु भवानीदास ने इसकी एक प्रति दी थी, इस रचना को साओं का धार्मिक ग्रंथ बतलाते हैं। श्री द्ट यह प्रति लंदन की रॉयल एशियाटिक सोसायटी को दे चुके हैं । यह एक चौपेजी हस्तलिखित पोथी है। २. साधु धर्म का विवरण, हिन्दुस्तानी में ;चौपेजी हस्तलिखित पोथी, पहली की भाँति श्री द्ट द्वारा रॉयल एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय को प्रदत्त । वीरभान और साधु सम्प्रदाय के इतिहास की जो व्याख्या मैंने यहाँ की है उससे भिन्न रूप में रेव॰ एच क्रिशर ने ‘एशियाटिक जर्नल, जिः ७, ४२ ७२ और बाद के, में प्रकाशित एक रोचक लेख में की है ।' सम्प्रदाय की कुछ अन्य धार्मिक कविताओं सहित ‘आदि उपदेश' सतनामी साधमत’ नामक एक संग्रह का अंश है, और इस प्रकार जिसमें हैं :

। १ मेरी रचना ‘हेन्दुई के प्राथनिक सिद्धान्त’ ( Rudinents Hindouis ) की भूमिका भी देखिए।