पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३२३

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१६८] हिंदुई साहित्य का इतिहास ४२'उपदेश पुष्पाबली—उपदेशों की बाटिका-गुलदस्ता अस्खलाक्क़' का हिन्दी अनुवाद : लाहाबाद, १८५४. ६७ आठभेजी पृष्ठ! ४३, जन ओ ओो मुकाबलाअतजबरा और ज्योमेट्रीउर्दू में. प० मोतीलाल की सहकारिता में मेरठ, १८६६,२२२ ६० । अंत में बंसीधर आगरे के नूरुल इमनामक छापेस्त्राने से आबइ हयात-इ हिन्द’ शीर्षक उर्दू पत्र प्रकाशित करते हैं, जिसके हिन्दी रूपान्तर का शीर्षक ‘भरत खंड अमृत’ है । बख्तावर ये एक हिन्दू फ़हीर थे जिन्होंने हिन्दी या ब्रजभाषा अंवों में सुनीसार' नामक प्रन्थ' की रचना की । इस ग्रंथ में सून्यवादियों ( जैन संप्रदाय ) के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। यह ग्रंथ दयाराम के चाय में लिखा गया था । दयाराम इस संप्रदाय के संरक्षक और १८१७ में आगरा प्रान्तान्तर्गत हाथरस नगर के राजा थे । इसी वर्ष मार्विवस हेस्टिन ने इस नगर पर अधिकार प्राप्त किया । इस उपदेशात्मक काव्य में प्रन्थकार का उद्देश्य ईश्वर आर मनुष्य सम्बन्धी सभी विचारों की प्रबचकता और निस्सारता दिखाना है । इस रचना से कुछ अवतरण यह दिए जाते हैं। इन अबतरों को प्रसिद्ध विद्वान् एच० एव० विल्सन ने हिन्दुओं के धार्मिक संप्रदार्थों की रूपरेखा ( ‘एशियाटिक रिसचेंज, जि० १७, ४० ३०६ और उसके बादू के पृष्ठ ) द्वारा विद्वन्मण्डली के सामने रखा था। असंगतता उनकी विशेषता होने पर भी मैंने उन्हें उद्धृत किया है, १ इस ग्रन्थ की एक हस्तलिखित प्रति कलकत्ते को पशियाटिक सोसायटो के पुस्त कालय में सुरक्षित हैं, किन्तु गलतों से उसे हाथरस के दयाराम गृत कहा गया है।