पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३०५

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१५० ? हिंदुई साहित्य का इतिहास हुई है ।’ किन्तु अपने पास रह गई थैली की ओर उनका ध्यान गया । जो घी और शकर उनके पास रह गई थी उसे भो लेकर डाकुओं के पीछे दौड़े । उन्होंने उनसे कहा : एक ग़लती हो गई है, तुमने सत्रछुड नों लिया: मेरी कमर में यह फैली थी ' इतना कह उन्होंने वे चीन गाड़ी के सामने फेंक दीं । यह सुन कर डाकुओं को आश्चर्थ हुआ। उन्होंने कहा : 'हे भगवान, ऐसा होते कभी नहीं देखा १ तुम हो कौन।

तदम कहाँ से आ रहे हो, और कहाँ जा रहे हो ? फिर तुम्हारा नाम क्या

है ? उन्होंने उनसे कहा ‘मैं पीपा, भगवान का भक्त हूँ : मैं संतों के लिए अपना सिर कटाने के लिए प्रस्तुत हैं । तुम्हें विश्वास हो गया कि जो कुछ मेरे पास था, वह सब तुमने ले लिया, किन्तु तुम धोखे में रहे, जो बचा हुआ मैं तुम्हें दे रहा हूं उसे ख़राज़ मत समझो ।' . ये बचन सुनते ही डा पीपा के चरणों पर गिर पड़ेऔर हाथ जोड़ उनसे क्षमा-याचना की। उन्होंने उन्हें गाड़ी और थैली लौटाते हुए कहा : अब हम आपको कृपा चाहते हैं । हमें दीक्षा दीजिएहमें भगवान के भक्तों में शामिल कर लीजिएहम यह भेंट आपको देते हैं पीपा ने कहा : अच्छी वात है, किन्तु आगे किसी को मत लूटना । यही उपदेश मैं तुम्हें देता हूं।’ एक दिन पीपा ने एक महाजन से कुछ रुपया उधार माँगा । उनकी इच्छानुसार महाजन ने चार सौ टके उन्हें दिए । पीपा ने एक रसीद लिख दी और एक अच्छी गवाही करादी महाजन ने उनसे कहाः यह घन थाप जव दे सकते हों तभी दें, मुझे कोई परेशानी न होगी।’ छः मैहीने बाद, महाजन ने उनसे रुपया माँगा, उसका पीपा से झगड़ा से हो गया, और उनके पक्ष की बात बिल्कुल सुनने के लिए राज़ी न हुध्रा 1 तन पीषा ने उससे कहा : कब तुमने मुझे रुपया दिया, और कब सुझे मिलामेरा गवाह कौन है ११ इस झगड़े के बाद, पीया र ने उससे रंसींद पंचों के सामने पेश करने के लिए कहा, किन्तु उसने . अपने घर के नएपुराने कागज़ व्यर्थ ही हूँदै । तब सब लोगों ने