पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३०२

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पॉप " १४७ साय नहीं खाते, इसलिए यदि तुम चाहते हो कि मैं खाऊँ, तो अपनी बी को लाग्रो ' उसी समय उन्होंने सीता को उसे लेने भेजा । ‘जानो, और हमारी मेहमानी करने वाले की स्त्री को ले आयो ।' सीता ने तमाम घर में उसे ढा, और अंत में उसे कमरे में नंगा पाया । उन्होंने उससे पूछा तुम नंगी क्यों हो । वैष्णव की स्त्री ने उत्तर दिया : ‘ऐसी चौरासी लाख' स्त्रियाँ हैं जो नंगी हैं । यदि मैं भी हैं तो इसमें आश्चर्य को क्या बात है ।' पत्र जिंस कपड़े को सीता पहने हुए थीं उसे उन्होंने वीच से फाड़ डाला और आधा उसे देकर उसे अपने साथ ले जाई। एक दिन पीपा कहीं नामंत्रित थे, और सीता घर पर ही रहीं। संत की अनुपस्थिति में, कुछ साधु घर आए; किन्तु घर में कुछ नहीं था । इतने पर भी सीता उन्हें बिठाकर, वनिए के घर गईऔर उससे कहा : 'कुछ सच मेरे घर आए हुए हैं, किन्तु मेरे पति घर पर नहीं हैं । मुझे कुछ सामान दे दो, लेलैंटने पर वे तुम्हारे दाम चुका देंगे ।' बनिए ने कहा : अच्छी बात है, तो लो और जो तुम चाहो ले जा; किन्तु शाम को, रात तक के लिए, ना जाना ।' सीता ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, उन्हें जो सामान चाहिए था उसे वे ले आई, और उसे साधुओं को तथा और उन को जो खाना चाहते ये भेंट किया । इसी बीच में पीपा श्रा गएऔर वह सत्र देख कर आश्चर्यच कित हुए । शाम को अपने को ऊपर से कपड़ों से ढक कर जब सीता जाने को हुई, तो वर्ष होने लगी और शीन हीं ज़मीन पानी से भर गई । पोया ने सड़क का शेष भाग दिखाते हुए उनसे अपना वचन पूर्ण करने के लिए कहा 1 उत्साह प्रदान करने की दृष्टि से उन्होंने उन्हें कन्धों पर बिठा लिया, और बनिए के घर ले आयाए; वे अकेली श्रन्दर गई और पीय दरवाजे से बाहर ही रह गए। जब बनिए ने उन्हें १ अत् अस्सी लाख और चार लाख